बहुत शोर करते रहें हैं अभी तक,
अब खामोश होकर, जहाँ देखते हैं.
इन्सान बनके, बहुत रह लिए हम,
अब शाहीन बनके, आसमां देखते हैं.
दफ़्न करके गैरत, बहुत दिन गुज़ारा,
अब सनक बनके सर का, गुमां देखते हैं.
ग़ज़ब था ज़माना, धुंधली सी यादें,
पलट कर समय को, कहाँ देखते हैं.
बेबस कलम और बेरंग रौशनाई,
कागज़ को अब हम, कहाँ देखते हैं.
अब खामोश होकर, जहाँ देखते हैं.
इन्सान बनके, बहुत रह लिए हम,
अब शाहीन बनके, आसमां देखते हैं.
दफ़्न करके गैरत, बहुत दिन गुज़ारा,
अब सनक बनके सर का, गुमां देखते हैं.
ग़ज़ब था ज़माना, धुंधली सी यादें,
पलट कर समय को, कहाँ देखते हैं.
गुन्चों से खुशबू, बिखरने लगी है,
कहाँ से चली है हवा देखते हैं.बेबस कलम और बेरंग रौशनाई,
कागज़ को अब हम, कहाँ देखते हैं.