कौन कहता है, मुहब्बत में असर होता है.
कई लोगों का, इसके बगैर, बसर होता है.
वो तनहा ही नहीं, न तन्हाई कि कभी क़द्र की,
जिनके लिए मैं जागता रहता हूँ, सहर होता है.
सारी ज़िल्लत को, नसीबी माना है मैंने,
हर रात क़यामत और दिन, कहर होता है.
तुम्हारी याद ने, बेबस किया, लाचार किया,
हर एक सांस में जो घुलता है, ज़हर होता है.
राघवेश रंजन
mind blowing.
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