जस्तुजू
मंगलवार, 6 सितंबर 2011
कम्बख्त वक़्त
कम्बख्त वक़्त भी, थम सा गया है.
रगों का खून, जम सा गया है.
याद आती है तेरी, सियह रातों में,
इक फौलाद सा दिल, सहम सा गया है.
बहता हूँ, बहकना मेरी फितरत तो नहीं,
उफनता हुआ दर्द, तन सा गया है.
राघवेश रंजन
2 टिप्पणियां:
Incognito Thoughtless
10 सितंबर 2011 को 9:58 am बजे
शायद यह तन जाना ही संभल जाना है....
अच्छा है..
किसी 'वाह'से भी आगे....।
अनुजा
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बेनामी
26 सितंबर 2011 को 6:23 am बजे
Bahut khoob...
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शायद यह तन जाना ही संभल जाना है....
जवाब देंहटाएंअच्छा है..
किसी 'वाह'से भी आगे....।
अनुजा
Bahut khoob...
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