रविवार, 20 नवंबर 2011

वज़ह ढूँढ लेता है

दिल भी बेक़रारी की वज़ह ढूँढ लेता है.
कई बार हकीकत से नज़र मोड़ लेता है.

जान देता है कभी बेजान लोगों पर,
कभी अजनबी से रिश्ते-नाते जोड़ लेता है.

मेरे दामन पे, तेरी यादों के छींटे हैं,
रूमानी बारिशों में भीगना बेजोड़ होता है.

पकड़कर उंगलियाँ, चलना तुमने ही सिखाया था,
फिर आज हाथों को, तू क्यों मोड़ देता है.

परेशानी पेशानी पे जब इज़हार होती है,
ये दिल धड़कर तेज़, अहम् को तोड़ देता है.