गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

उतर आया है

वक़्त की थपकियों नें सुलाया है।  
फिर कोई चाँद ज़मीं पे उतर आया है।   

कुछ हरे ज़ख्म हैं तो ज़िंदा हूँ ,
फिर किसी ने खाबों में गुदगुदाया है। 

कैसे ज़ज़्बात हैं, कई बार सिहर जाता हूँ,
कोई शख्स छूकर मुझे जगाया है। 

एक बच्चे की तरह, दौड़ जाता हूँ,
कोई खिलौनों का बाजार लिए आया हैं। 


बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

साथ मेरा छोड़ कर

वो सलामत रह न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर। 
फिर कभी भी उठ न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर। 

मेरे लब्ज़ों के बदौलत,
बात थी, आवाज़ थी। 
फिर कभी कुछ कह न पाया, 
साथ मेरा छोड़ कर।  

उँगलियों के दरमियां,
उंगलियां मेरी भी थीं,
कोई रिश्ता निभा न पाया, 
साथ मेरा छोड़ कर। 

एक ज़र्ज़र सा मकाँ हूँ,
फूटता हूँ, टूटता हूँ,
वो भी तो हंस न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर।