शनिवार, 31 दिसंबर 2016

कौन हूँ मैं?

मैं क्या हूँ, कौन हूँ मैं?
बस मौत का ज़रिया हूँ मैं.

मेरी आँखों में झाँककर देखो,
दर्द-ए-ग़म का दरिया हूँ मैं.

फिर से आकर ज़रा मुझे देखो,
अपने साथ क्या किया हूँ मैं.

तल्ख़ बातों से कुछ नहीं मिलता,
बंद होठों से सब सहा हूँ मैं.

अब किसी आग से डर नहीं लगता,
पिघली हुई मोम का कतरा हूँ मैं.

दूर वीराने में रौशनी नज़र आई ,
तेरी उम्मीद पर ज़िंदा हूँ मैं.
 

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

फ़ितूर

 

ये दिमाग़ का फितूर है 
या इश्क़ की बातें हैं,
कभी उनको बताता हूँ ,
कभी खुद को बताते हैं. 
 
तुम जब से गए हो,
मुझे होश नहीं है. 
सिर्फ तुमको सोंचता हूँ,
और दिन को बिताते हैं. 
 
तुम आओगे जल्द फिर,
ये वादा है तुम्हारा. 
हम लम्हे जोड़ जोड़कर ,
दिन को मिटाते हैं. 
 
फक्र तुमसे मुहब्बत का,
बहुत है मुझे लेकिन,
दुनिया से छुपाता हूँ,
कभी तुमसे छुपाते हैं. 
 
जो जान गयी दुनिया,
कोई फ़िक़्र नहीं है,
तुम जो हमारे हो,
और हम जो तुम्हारे हैं. 
 
राघवेश रंजन