मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

आज कल खुश नहीं रहता हूँ।
खामोश हूँ, कुछ नहीं कहता हूँ।

धीरे धीरे मुहब्बत जवाँ होती है,
बेसब्र हूँ पर इन्तज़ार करता हूँ।

नज़र तेरी अब नज़रअंदाज़ करती हैं,
वक़्त बदलेग, इसलिए सब्र रखता हूँ।

तू पत्थर है, तो पत्थर ही सही,
मैं हूँ फौलाद, पत्थर तराशता रहता हूँ।

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

बाँट कर रख दिया है तुमने मुझको,
दिमाग और दिल, दो ओर चले जाते हैं।

सोंचता हूँ के कह दूँ के मोहब्बत है तुझसे,
इश्क़ में फैसले, इस तरहा लिए जाते हैं।

उफ़ ये तन्हाई, अकेलापन बर्दाश्त नहीं,
सोंचता रहता हूँ तुझे, पल पल मिटे जाते हैं।

घिस के हाथों को, लकीरें मिटाता रहता हूँ,
तुम्हारे साथ की, गुंजाइशें बनाये जाते हैं।
कुछ वक़्त निकालो,
मिलो तो सही।
मेरा वादा है,
वक़्त लम्हों में सिमट जायेगा।

बेताब दिल की,
सुनो तो सही।
मेरा दावा है,
इश्क़ आंखों का रगों में उतर जायेगा।

दरमियाँ दीवारों को,
तोड़ो तो सही।
फ़रमाया है,
कमबख्त अरमाँ मचल जायेगा।

भूलना चाहते हो?
भूलो तो सही।
दिल का क्या है,
संभलते संभलते संभल जायेगा।