किसी की बंद मुट्ठियो में, धुआं नहीं होता.
वो जो फिरते हैं, उठाये हुए आसमां सर पे,
हर किसी की फितरत में, ये जहाँ नहीं होता.
इबादत भी हूनर है, हूनर नहीं चीज़ आसां,
ये जान लो के, हर मस्जिद में ख़ुदा नहीं होता.
उनको कहना था, वो कहते हैं, कहकर ही रहेंगे,
पर अक्सर चुप रहने वाला, बेवफ़ा नहीं होता.
राघवेश रंजन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें