हर तरफ तू हो, मैं वो ज़माना चाहता हूँ.
तेरे हर रंग नें, तकसीम किया है मुझको,
तुझको हर रंग में, आज़माना चाहता हूँ.
ऐ बेरहम, फिर लौट आओ मेरी गली,
बेपनाह इश्क का, वो खज़ाना चाहता हूँ.
मेरी आँखों के नहीं, तेरी आँखों के सही,
नींद के उन्मांद को, मैं उड़ाना चाहता हूँ.
थरथराते हाथ को, फिर से आकार थाम लो,
गुज़रे हुए उस वक़्त को, और जीना चाहता हूँ.
राघवेश रंजन
bahut umda
जवाब देंहटाएंsanjeev
Oh my God! I never knew this facet of yours. Beautiful poems. Keep writing, I am going to be checking frequently.
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