शनिवार, 10 सितंबर 2011

हसरत रखता हूँ

कफ़स में कैद परिंदा हूँ,
परवाज़ की हसरत रखता हूँ.

खामोश अंधेरों में रहकर,
आवाज़ की हसरत रखता हूँ.


मैं वक़्त के खेल को झेल रहा,
नए अंदाज़ की हसरत रखता हूँ.
 
 
ख़ुद मेरी गिरेबाँ, गैर हुई,
राज़ की हसरत रखता हूँ.


उनको पाकर ही दम लूँगा,
हमराज़ की हसरत रखता हूँ.

अक्सर हारा हूँ मैं फिरभी,
आगाज़ की हसरत रखता हूँ.
राघवेश रंजन



1 टिप्पणी:

  1. अक्‍सर हारा हूं फिर भी आवाज़ की हसरत रखता हूं......।

    क्‍या बात कही है....।

    हौसला है फरेब खाने का......।

    मैं भी.....

    अनुजा

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