ओस की बूँदें फिरभी, गुलाब पर हैं.
दूरियां ज़रूर हैं, हमारे दरमियाँ,
मिलते फिरभी, हिसाब पर हैं.
पैमाने छलक कर, जिंदा रखे हैं,
उँगलियाँ उठती अक्सर, शराब पर हैं.
हमने झुककर, तुझे कबूल किया,
तंज कसते मेरे, आदाब पर हैं.
आज में कल छुप गया लेकिन,
हम आज भी, ख़राब पर हैं.
राघवेश रंजन
आप आज कल पूरे शबाब पर हैं....।
जवाब देंहटाएंहम आज भी ख़राब पर है
गजब है