मंगलवार, 20 सितंबर 2011

चाहता हूँ

तेरी आगोश में, सिमट जाना चाहता हूँ.
हर तरफ तू हो, मैं वो ज़माना चाहता हूँ.

तेरे हर रंग नें, तकसीम किया है मुझको,
तुझको हर रंग में, आज़माना चाहता हूँ.

ऐ बेरहम, फिर लौट आओ मेरी गली,
बेपनाह इश्क का, वो खज़ाना चाहता हूँ.

मेरी आँखों के नहीं, तेरी आँखों के सही,
नींद के उन्मांद को, मैं उड़ाना चाहता हूँ.

थरथराते हाथ को, फिर से आकार थाम लो,
गुज़रे हुए उस वक़्त को, और जीना चाहता हूँ.

राघवेश रंजन

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