मंगलवार, 6 सितंबर 2011

कम्बख्त वक़्त

कम्बख्त वक़्त भी, थम सा गया है.
रगों का खून, जम सा गया है.

याद आती है तेरी, सियह रातों में,
इक फौलाद सा दिल, सहम सा गया है.


बहता हूँ, बहकना मेरी फितरत तो नहीं,
उफनता हुआ दर्द, तन सा गया है.



राघवेश रंजन

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