सोमवार, 26 सितंबर 2011

अकेलापन


हमारे वास्ते, अपने घर में, कहीं कोई जगह ही नहीं.
हमारा आशियाँ बच जाये, ऐसी कोई वजह ही नहीं.

रिश्तों की रस्साकसी और ज़िन्दगी का कश्मकश,
उलझनें यूँ साफ़ हैं, कहीं कोई गिरह ही नहीं.

हर तरफ धुंध है, अँधेरा है और अकेलापन,
ऐसा लगता है कि, इस रात कि सुबह ही नहीं.

उसने लम्हे जलाकर, रौशन किया है घर अपना,
लगता है, कभी साथ में तय किया, सफ़र ही नहीं!

राघवेश रंजन

चित्र गूगल इमेजेस के सौजन्य से

2 टिप्‍पणियां:

  1. usne lamhe jalakar raushan kiya hai ghar apna, kya baat hai raghwesh. How did you keep this fire alive for so long?

    CS

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  2. उलझनें यूं साफ हैं, कहीं कोई गिरह ही नहीं....


    गजब बात है....नजर एकदम साफ और रास्‍ता भी।
    आप मुझे प्रेरित कर रहे हैं....।

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