वक़्त की थपकियों नें सुलाया है।
फिर कोई चाँद ज़मीं पे उतर आया है।
कुछ हरे ज़ख्म हैं तो ज़िंदा हूँ ,
फिर किसी ने खाबों में गुदगुदाया है।
कैसे ज़ज़्बात हैं, कई बार सिहर जाता हूँ,
कोई शख्स छूकर मुझे जगाया है।
एक बच्चे की तरह, दौड़ जाता हूँ,
कोई खिलौनों का बाजार लिए आया हैं।
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