वो सलामत रह न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर।
फिर कभी भी उठ न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर।
मेरे लब्ज़ों के बदौलत,
बात थी, आवाज़ थी।
फिर कभी कुछ कह न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर।
उँगलियों के दरमियां,
उंगलियां मेरी भी थीं,
कोई रिश्ता निभा न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर।
एक ज़र्ज़र सा मकाँ हूँ,
फूटता हूँ, टूटता हूँ,
वो भी तो हंस न पाया,
साथ मेरा छोड़ कर।
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