शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

उसने

ख़त के पुर्ज़े उड़ा दिया उसने।
किस बात की सज़ा दिया उसने।

मेरा फ़र्ज़ था उसका हिफाज़त करना,
पर गुनहगार बना दिया उसने।

उसको पलकों पर बिठाकर रखा था,
फिरभी नज़रों से गिरा दिया उसने।

उसी के साथ खुशियां तलाशता था मैं,
छोड़कर हाथ, अपनी औकात बता दिया उसने।






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