गुरुवार, 10 अगस्त 2017

कुछ कहीं टूट सा गया है!

कुछ कहीं टूट सा गया है।
लगता है कुछ छूट सा गया है।

अब इबादत में मन नही लगता,
शायद वो मुझसे रूठ सा गया है।

कोई क़ुर्बत ही नही अब दरमियाँ,
जो कुछ भी था, मिट सा गया है।

न जाने क्या हो गया उस दिन,
बुलबुला था, फूट सा गया है। 

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