मंगलवार, 12 जून 2012

बदलाव

वक़्त  पर धूल जमी,
फ़ितरत की आज़माइश पर।
ज़िन्दगी भी थम गयी,
दरारों की पैदाइश पर।

नापते रिश्तों को हैं,
और तौलते नातों को हैं।
दरमियाँ फ़साद बढ़े,
बालिश्तों की गुंजाइश पर।

रात से है चाँद या,
चाँद से ये रात है।
कश्मकश बढती रही,
तन्हाई की पैमाइश पर।

बेसबब सी बात पर,
वाह भी है, आह भी।
एक शख्स , तमाम चेहरे,
बाज़ारों की फरमाइश पर।

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