जो बिक गया है,
घर पे सजाऊँ कैसे?
गिर गया जो, निगाओं से,
उसे आज, उठाऊँ कैसे?
नापाक, इरादों का शहर,
अब हौसले, बढाऊँ कैसे?
जब मरासिम ही नहीं,
कोई जश्न, मनाऊँ कैसे?
जो तारीख़ दगा दे तो,
ये वक़्त, बिताऊँ कैसे?
जब खून में शोले हों,
मैं जिस्म, बचाऊँ कैसे?
घर पे सजाऊँ कैसे?
गिर गया जो, निगाओं से,
उसे आज, उठाऊँ कैसे?
नापाक, इरादों का शहर,
अब हौसले, बढाऊँ कैसे?
जब मरासिम ही नहीं,
कोई जश्न, मनाऊँ कैसे?
जो तारीख़ दगा दे तो,
ये वक़्त, बिताऊँ कैसे?
जब खून में शोले हों,
मैं जिस्म, बचाऊँ कैसे?